Tuesday, December 23, 2014

रोज़गार, व्यवसाय_


यदि दसवे (१०) वे भाव में स्थित ग्रह अथवा दसवे (१०) भाव का स्वामी ग्रह निम्न हो तो :-
1. सूर्य- बहुत आशाएं , उमंग रखने वाला , बड़ा अधिकारी बनना चाहे। उच्च पद प्राप्ति,सरकारी सेवा , किसी के अधीन रहना बहुत मुश्किल। डॉक्टर , लीडर, प्रबंधक।
2. चन्द्रमा- व्यापार, प्रोविज़न स्टोर, कृषि , पैतृक भूमि, साहित्य, रोज़गार में परिवर्तन हेतु मन में विचार आते रहे।
3. मंगल-जोखिम के काम , पुलिस, सेना , मैकेनिकल काम, सर्जन , धातु उद्योग , केमिस्ट , फायर ब्रिगेड , होटल, ढाबा , इंजिनियर आदि।

4. यदि बुध कहीं भी अकेला तथा अशुभ प्रभाव में ना हो तो, जातक व्यापार में बहुत उन्नति करता है.
5. जब शनि के आगे राहू (जैसे -शनि ५ वे भाव में हो और ७ वे भाव में राहू हो और इनके बीच में कोई ग्रह नही हो ) तो जातक को ३५ साल की उम्र तक रोज़गार सम्बन्धी निराशा का ही सामना करना पड़ता है। किसी भी कार्य में पक्के तौर पर पैर नहीं जमते है।
6. जिस जातक का मेष, कर्क, तुला, मकर लग्न होतो, वह जातक लीडर, उच्च पद प्राप्त करता है। उसकी इच्छायें बड़ी-बड़ी ऊंची तथा महान होती है , इसको किसी के अधीन काम करना मुश्क़िल है।
7. यदिजातक का जन्म वृषभ, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ हो तो जातक प्रबंधक अथवा कंपनी का मालिक के रूप में पहचाना जाता है।
8. यदि मिथुन, कन्या, धनु, मीन लग्न होतो, ये जातक प्रबंधकीय, अथवा दायित्वपूर्ण कार्यों में कम सफल होते है। बल्कि किसी के अधीन काम करके ही लाभ उठा सकते है। ये परिचारक , लेखक, आदि क्षेत्रों में अधिक सफल होते है.



शुक्र

             शुक्र _ शुक्र ग्रह जातक के जीवन में भौतिक सुखों तथा के साथ-साथ दाम्पत्य जीवन तथा जातक के अवैध संबंधों के बारे में भी बता देता है।  जिस जातक /जातिका कुंडली में शुक्र नवांश कुंडली में बुध की राशि मिथुन, अथवा कन्या राशि में होता है , उस जातक/जातिका के जीवन में कभी भी अवैध सम्बन्ध हो सकते है। चाहे शुक्र कुंडली में स्वराशि, स्वनक्षत्र , अथवा उच्च राशि में ही क्यों न हो। यदि शुक्र नवांश कुंडली बुध के नवांश की में होतो, दाम्पत्य जीवन में विपरीत प्रभाव पड़ता ही है। २. यदि कुंडली में शुक्र नीच राशि (कन्या ) में होतो , भी उपरोक्त फल की संभावना रहती है।                                                                                                                          शुक्र की अन्य ग्रहों से युति के फल :  जब शुक्र (शनि, राहू, मंगल अथवा केतू के नक्षत्रों ) में होता है तो ,अथवा शनि ,मंगल की राशियों में होता है , तो दूषित हो जाता है। इसी प्रकार शुक्र यदि शनि, राहू , मंगल, केतू, या सूर्य की युति ,दृष्टि अथवा मध्यत्व से भी दूषित हो की जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप जातक/जातिका में निम्न अवगुण आ सकते है। जातक/जातिका दुश्चरित्र, विवाह हीनता , विलम्ब से विवाह, जात्येतर विवाह, इतर यौन सम्बन्ध, अलगाव, तलाक अथवा कष्टप्रद दाम्पत्य जीवन आदि फल प्राप्त हो सकते है।

शुक्र से बनने वाले योग


१. जिस कुंडली में शुक्र वक्री होता है उस जातक को दाम्पत्य जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यह परेशानी जब-जब गोचर में शुक्र वक्री होता है , उस समय आती है।
२. जिस जातिका की कुंडली में शुक्र, चन्द्रमा, और गुरू केंद्र में १, ४, ७, १० में होतो , वह जातिका गरीब के घर में जन्म लेकर भी जीवन के सभी सुख भोगती है।
३. यदि जिस जातक/जातिका के लग्न में सूर्य, चन्द्रमा हो और १२ वे भाव में शुक्र होतो, वह जातक बहुत धनवान होता है।
४. यदि गुरू से १२ भाव में शुक्र हो तो , यह योग जातिका को धनवान बना देता है।
५. जिस जातिका के केंद्र १, ४, ७, १० वे भाव में शुक्र मीन, वृषभ , तुला राशि में से किसी भी राशि में होतो वह जातिका जीवन में धनवान हो जाती है।                                                                                                         
६. जिस जातिका की कुंडली में शुक्र धनु या मीन राशि में हो और उस पर गुरू की दृष्टि होतो वह जातक का दाम्पत्य जीवन सुखी होता है।
७. यदि शुक्र के २रे भाव और १२ वे भाव में पाप ग्रह सूर्य, शनि, राहू हो तो जातक का दाम्पत्य जीवन में कष्ट होता है।
८. यदि शुक्र मिथुन अथवा कन्या राशि में हो , और उसको चन्द्रमा देखता हो तो , वह जातिका जीवन भर आंनद का उपयोग करती है।
९. जिस जातिका के मिथुन अथवा कन्या राशि के शुक्र पर मंगल की दृष्टि होतो , उस जातक का अत्यधिक कामुकता के कारण धन नष्ट हो जाता है।
१०. जिस जातिका के धनु अथवा मीन राशि के शुक्र पर मंगल की दृष्टि हो तो, ऐसी जातिका पुरूष से घृणा करती है।